सोमेश्वर की पहाड़ियों से निकली बूढ़ी गंडक नदी एक पुरानी जलधारा है तथा इसे गंगा की सात धाराओं
में से एक मानी जाने वाली गंडकी नदी का प्रतिरूप माना जाता है. इसे शुरूआत में
सिकराना नदी के नाम से भी जानते हैं. यह गंडक नदी की एक परित्यक्त धारा है जो कि
उसके समान्तर बहती है. बूढ़ी गंडक नदी का उद्गम स्थल मूलरूप से भारत के बिहार
राज्य के पश्चिम चंपारण में रामनगर व बगहा के बीच स्थित चऊतरवा चौर को माना जाता
है. यह गंगा नदी की एक सहायक नदी है तथा इसे उत्तर बिहार की सबसे लम्बी नदी के रूप
में जाना जाता है.
बूढ़ी गंडक नदी की लम्बाई 320 किलोमीटर व जलागम क्षेत्र
12,021 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 9,601 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बिहार राज्य के
अंतर्गत व शेष क्षेत्र नेपाल में आता है. यह नदी अपने 320 किलोमीटर के इस सफर में
बिहार राज्य के पूर्वी चम्पारण, मुजफ्फरनगर, समस्तीपुर, खगड़िया समेत कई अन्य
जिलों से होकर गुजरती है. बूढ़ी गंडक नदी उत्तरी बिहार के मैदान को दो भागों में
बांटती है तथा इसकी धारा का बहाव उत्तर- पश्चिम से दक्षिण- पश्चिम दिशा की ओर है.
अपनी यात्रा की शुरूआत में यह नदी पहले 56 किलोमीटर चलने के बाद दक्षिण की ओर
मुड़ती है.
सोमेश्वर की श्रेणियों से
निकलने के बाद से यह नदी सिकराना के नाम से जानी जाती है, लेकिन अपने मार्ग में
तिऊर नदी से मिलने के बाद इसे बूढ़ी गंडक नदी कहा जाने लगता है. इसके बाद यह नदी
मुजफ्फरनगर व दरभंगा जिले में प्रवेश करती है तथा दक्षिण- पूर्व दिशा में 20
किलोमीटर के क्षेत्र में बहते हुए आगे बढ़ती है. यहां से यह नदी समस्तीपुर और
बेगुसराय पहुंचती है, जहां यह सर्पीले आकार में बहने लगती है. इसी आकार में बहते
हुए यह मुंगेर के पूर्वोत्तर में खगड़िया में गंगा नदी में समा जाती है. गंगा नदी
में समाहित होने के साथ ही इस ऐतिहासिक नदी का घुमावदार सफर समाप्त हो जाता है.
बूढी गंडक घाटी क्षेत्र से जुड़े शोध कार्य, नवीनतम जानकारियों आदि को दस्तावेज करना
बिहार-बाढ़-सुखाड़-अकाल की तलाश मुझे समस्तीपुर जिले के लदौरा गांव ले गई, जहां 1962 और 1975 में बूढ़ी गंडक नदी का तटबंध टूटा था। यह कहानी साधू...
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